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Saturday, June 6, 2020

हनुमान चालीसा


                 ।।   श्री हनुमान चालीसा   ।।  

                                         दोहा 

श्रीगुरु चरण सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारू ।   बरनऊँ  रघुबर बिमल जसु जो दायक फल चारी।।
          बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौ पवनकुमार ।  बल,बुद्धि,विद्या देऊ मोहिं हरउ क्लेस बिकार।।   

                                           चौपाई

जय हनुमान ज्ञान गन सागर।       जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।। 
राम दूत अतुलित बल थामा।              अंजनी पुत्र पवन सुत नामा।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी।                कुमति निवार सुमति के संगी।।   
कंचन बरन बिराज सुबेसा।              कानन कुण्डल कुंचित केसा।।
हाथ ब्रज औ ध्वजा बिराजै ।                      कांधे मूँज जनेऊ साजै।। 
कंचन सुवर केसरी नंदन।                    तेज़ प्रताप महा जग बंदन।। 
विद्यावान गुनी अति चातुर।               राम काज करीबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनबे को रसिया।            रामलखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरी सिन्ही  दिखावा।      विकट रूप धरी लंक जरावा।।
भीम रूप धरी असुर संहारे।                    रामचंद्र के काज सवाँरे।।  
लाये संजीवन लखन जिआरे।               श्री रघुबीर हरषी उरलाये।।  
रघुपति किन्ही बहुत बड़ाई।         तुम मम प्रिये भरतई  सम भाई।। 
सहस बदन तुमरो मत गावे।            अस कही श्रीपद कंठ लगाबै ।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनिसा।             नारद सारद सहित अहिसा।।
जम  कुबेर दिगपाल जहाँ ते।       कबि कोबिद  कहे सके कहा ते।।
 तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।         राम मिलाये राज पद  दीन्हा।। 
 तुम्हरो मंत्र विभीषण माना।           लंकेस्वर  भये सब जग जाना।।
 जुग सहस्र जोजन पर भानू।           लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
 प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।         जल्दी लाँघि गए अचरज नहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते।                    सुगम अनुग्रह तुमहरे तेते।।
 राम दुआरे  तुम रखवारे।                    होत न आज्ञा बिनु  पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।              तुम रक्षक काहू को डरना।।
आपन तेज सम्हारो आपे.                       तीनो लोक हाँक तै काँपे।।
भूत पिसाच निकट नहीं आवै।                     महाबीर जब  सुनाबै।।
नासै रोग मिटै सब पीरा।                   जपत निरन्तर हनुमत बीरा।।
संकट तै हनुमान छुड़ावै।                मन क्रम वचन ध्यान जो लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा।            तिनके काज सकल तुम साजा।।
और मनोरथ जो कोई लावै।             सोई अमित जीवन फल पावै।।  
चारो जुग परताप तुम्हारा।                  है परसिद्ध जगत उजियारा।। 
साधु संत के तुम रखवारे।                    असुर निकंदन राम दुलारे।। 
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।            अस वर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा।                   सदा रहो रघुपति के दासा।। 
तुम्हरे भजन राम को भावे।              जन्म जन्म के दुःख बिसरावै।।
अंत काल रघुबर पुर जाई।                जहां जन्म हरिभक्त कहाई।।
और देवता चित्त ना धरई।                 हनुमत सेई सर्ब सुख करई।।  
संकट कटै मिटै सब पीरा।                जो  सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जै जै जै हनुमान गोसाईं।                 कृपा करहु गुरुदेव की नाहीं।।
जो सत बार पाठ कर कोई।                छूटहि बंदी महा सुख होई।।  
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।              होय सिद्धि सखी गौरीसा।। 
 तुलसीदास सदा हरी चेरा।                 कीजै नाथ हृदय महा डेरा।। 

                                               दोहा 

                         पवन तनय संकट हरण मंगल मूर्ति रूप।
                       राम लखन सीता सहित हृदये बसहु सुर भूप।

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